Saturday, March 17, 2012

कितना 'समाजवाद' है सपा में?

समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में सरकार ज़रूर बना  ली है लेकिन पार्टी में गुंडई बने रहने की छवि अभी भी बनी हुई है . हाल ही में शपथ लेने वालों में से  २८ मंत्री ऐसे हैं जिनके खिलाफ कोर्ट कचेहेरी के केस चल रहे हैं. अखिलेश यादव, जो की युवा पार्टी के युवा चेहरे हैं, उन्होने भी पार्टी में इस तरह के लोगों को लाकर जनता के बीच कोई ख़ास अच्छा सन्देश नहीं भेजा है जिससे लोगों तक यह बात पहुँच सके कि वो  पार्टी की 'गुंडई' छवि को या 'दबंग' छवि को बदलने का कोई प्रयास कर रहे हैं.

सब जानते हैं कि विश्वविद्यालयों में एवं छात्र संघ राजनीति में इस पार्टी का बहुत बड़ा योग दान है. सिर्फ मायावती ने ही छात्र संघ राजनीति में पाबंदी लगायी हुई थी जिससे प्रदेश के असामाजिक तत्त्व और अराजकता फैलाने वाले तत्त्व किस कोल में छुपे बैठे थे पता ही नहीं चला था इतने साल. लेकिन युवा वर्ग के बीच लोकप्रिय बनने का इक मुख्य कारण यह भी है कि सपा युवाओं के बीच पनाह देती है नक़ल, झूठ, फरेब, चोरी, जालसाजी, बिना लाइसेंस गाडी चलाना जैसी चीज़ों को. युवाओं के बीच जो मुख्य मुद्दा है- रोज़गार पाना या शिक्षा के नए आयाम खोजना और शिक्षा और रोज़गार पर सोचना ताकि भविष्य उज्जवल बनाया जा सके- इन मुद्दों पर आजकल का युवा कितना सोचता है ? कम से कम जो सोचता भी है, तो वोह युवा वर्ग वोट डालने नहीं जाता - अफ़सोस!!

इस चुनाव से यह बात साफ़ ज़ाहिर है कि शहरों में भी जो वर्ग सामने वोट डालने आया है, यह सुशिक्षित सुशील वोटर वर्ग नहीं है. यह वोह वर्ग है जो मायावती की  भ्रष्टाचार में लिप्त सरकार से निजात तो चाहता था लेकिन उसका जवाब उसे समाजवाद-लोहियावाद की इस मिलीजुली सपा में मिलेगा, ऐसा पूरी तरह अनुमान नहीं था . अखिलेश की क्रांति रथ यात्रा ने तोह अपना रंग दिखा दिया लेकिन उनकी मंत्रियों की टोली अब कितना कमाल दिखा पाएगी, यह देखना बाकी है .

क्या वाकई में सपा में तनिक भी 'समाजवाद' है? गाँव में, शहरों के गरीब इलाकों में और प्रदेश के मुसलमान वोटरों में लोकप्रियता ज़रूर बढ़ी है लेकिन क्या पार्टी इस बार अपनी लोकप्रियता बनाए रह पाएगी ? कहीं यह सिर्फ एंटी - incumbency का खेल तो नहीं ?