Saturday, January 18, 2014

नेपथ्य में



नींव की ईंट बनूंगी 
लहर बनके बहूँगी 

आसमान का तारा बनें 
पेड़ की निर्बोध जड़ रहें 

देश के सिपाही रहना 
'आम औरत' गमछा पहना 

समुद्र का धरातल जैसा 
शेर की कन्दरा वैसा 

वाक्य का आखिरी अक्षर 
जैसे गाँव का सूखा पोखर 

शरीर का एक अंश बनूँ 
तेरे आंसुओं की बूँद रहूँ 

यही एक स्वप्न है मेरा 
यथार्थ का स्वार्थ है तेरा 

आकाशवाणी जैसा स्वर 
बढ़ता हुआ समाज का ज्वर 

कैसी 'लीला' है राम अपार ?
हनुमान - बनाओ हमें साकार 

हम भी देखें वास्तव में 
जैसे हम नेपथ्य में 

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