Saturday, November 8, 2014

सिफर

बेशुमार हमसफ़र हैं
फिर भी इक सिफर है

हज़ारों चलते हैं साथ
फिर भी दूर हैं सबके हाथ
एक-एक  तारा कहता यह  कहानी
नयी सुनाओ नहीं सुननी पुरानी
अकेली वह डगर है अनोखी
न हैं दोस्त न ही कोई सखी
फिर भी रास्ता पकड़ना है यारों
शत्रु बनें या रहते तुम प्यारों

बेशुमार हमसफ़र हैं
फिर भी इक सिफर है

हर राह को पकड़कर एक
मिलती है मंज़िल वहीँ अनेक
छोड़ देते हैं सभी राहों में
हासिल होता है गंतव्य निगाहों में
लेकर एक सपना नया
छोड़कर निष्ठुर प्रेम और दया
चलें एक अनूठी मंज़िल
बनते हुए अधूरी ग़ज़ल


बेशुमार हमसफ़र हैं
फिर भी इक सिफर है 

1 comment:

  1. क्या होता है ये सिफर? किसी चीज़ की कमी?

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