भूखा पेट करता व्यवसाय
देह पर सहता अन्याय
माझी की मझधार में
हमारी एक कटार में
वास करते हैं आप
और करते रहते हैं पाप
चक्रव्यूह है अभिमन्यु का
राजनीति और सामाजिक परिस्थिति का
'फूलन ' और 'भंवरी ' सखियाँ
अश्रु-धारा में बह गयी अँखियाँ
बाल्य - काल था सुखमयी
यौवन भी रहा रहस्यमयी
अब वयस्क हैं पर क्या
'यूथ पॉलिटिक्स' नज़र आती 'इश्किया'
देह पर हक मांगने हेतु
बनाएंगे हम कोई भी 'सेतु'
'जय हिन्द'!
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