नदी के उस छोर पर
फिर आता है पानी
सूखेपन का एहसास कराके
बह जाता है पानी
प्यास जगाके स्वप्न दिखाके
जोर से एक शोर मचाके
कलकल करता बहता रहता
अस्तित्व सा बताता पानी
दिनभर के उपद्रव से
दूर वन के झालर से
मीठा मीठा स्वाद देकर
कुछ कहता रहता पानी
आवाज करता पानी
शांति भंग करता
मेरे बौनेपन का प्रतीक
मुझे अधूरा छोड जाता पानी
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