मैंने अपना इतवार कैसे मनाया
जबसे मेरी 'नन्ही परी' मेरे जीवन में आई है, तबसे चारों तरफ़ मस्ती ही मस्ती है। हर एक पल उल्हास और हर्ष से भरा रहता है, मानो स्वयं देवी मेरे घर में पधारी हों।
मेरी हर इच्छा पूरी होना, मुझे ज़रुरत से अधिक इज़्ज़त, प्रेम और स्वावलम्बन की अनुभूति होना- यह सब महज़ एक इत्तफ़ाक़ नहीं था बल्कि इश्वर द्वारा एक सोची - समझी रणनीति थी जिसने मेरे जीवन में एक अनोखा दौर लाया था।
यही सब सोचते - बूझते , गाड़ी चलाते हुए पिछले इतवार मैं अपनी बेटी और उसकी आया -दीदी को अपने साथ घुमाने तेज़पुर ले गई, जो कि हमारे विद्यालय से चालीस किलोमीटर की दूरी पर है। हम सुबह ११ बजे घर से निकले - मैं अपने कुछ ऑफिस के काम से निवृत्त होकर जब घर आई तो दोनों ही लोग तैयार बैठे हुए थे। हमने बेटी का झोला तैयार किया जिसमें उसकी दूध की बोतल, उसका नैप्पी पैड और कुछ खाने की चीज़ें रखीं। अपने लिए थोड़ा पानी और कुछ एटीएम से निकाले हुए पैसे जो बटुए में रखे थे- वो भी जुटाए और फ़ोन के साथ चल पड़ी।
विद्यालय से निकलते समय हमने गेट पर बायोमेट्रिक पंच किया और चाय के बागानों के बीच ख़ूबसूरत सफ़र पर निकल पड़े। सड़क थोड़ी ऊबड़ - खाबड़ थी क्योंकि रास्ता कच्चा था , और आधा रास्ता अभी बन रहा था। हम किसी दूसरे रास्ते से तेज़पुर पहुँचे, गूगल मैप द्वारा और फिर अच्छी पार्किंग स्पेस ढूँढ़कर रिलायंस स्मार्ट बाज़ार की ओर चल दिए।
अभी घड़ी में १२. ३० बजे थे और हम सब को कलकला के भूख लगी - प्रणिका, मेरी देवी - रुपी बेटी सो गई थी. एक अच्छी - सी जगह ढूँढ़कर जहाँ पर बेटी को सुलाने की जगह भी थी, ऐसे रेस्टूरेंट में हम गए और खाना ऑर्डर किया। मेनू में सब कुछ शामिल था - चाऊमीन , पकौड़ा , सैंडविच , पाओ - भाजी , मोमो , मैग्गी , आदि तरह - तरह के स्वादिष्ट पकवान।
हमने एक प्लेट छोले - चावल और एक प्लेट वेजिटेबल मैग्गी माँगी और उन्हें पैसे देकर अपने आर्डर का इंतज़ार करने लगे। काफी समय बीत गया जब हमें हमारा खाना मिला और साथ ही में फ्रेश लाइम सोडा और एक पानी की बोतल। हमने पेट भरकर खाना खाया और फिर कुछ खरीददारी करने बगल में ही स्थित रिलायंस स्मार्ट बाज़ार में चले गए।
हमने शुरुआत की वहाँ पर एक ट्रॉली लेकर जिसमें अपना सामान रख सकें - फिर हम सीधे दूसरी मंज़िल पर गए जहाँ सब घरेलू सामान बिक रहे थे। हमने कुछ साबुन , क्रीम और शैम्पू के साथ आलू - प्याज़ और थोड़े स्नैक्स भी ख़रीदे। फिर बिल बनवाया और जल्द ही अपनी गाड़ी की ओर चल दिए।
लौटते समय हम रुके जहाँ बच्चों के खेलने के लिए कुछ झूले थे। वहाँ बेटी को थोड़ी देर खिलाकर हम अपनी राह चल दिए और रास्ते में गाड़ी में तेल भरते हुए अपने विद्यालय दोपहर ३ बजे तक लौट आए।
यह मेरी बेटी के साथ अकेले पहली आउटिंग थी।





