Wednesday, November 1, 2017

उत्तम प्रदेश

उत्तर प्रदेश की आबो - हवा अब शायद मुझे लगने लगी है।  यहाँ पर छह साल रहने के बाद अब एहसास हो रहा है कि शायद मैं उत्तर प्रदेशी की ही थी हमेशा से। बचपन में कभी जाना नहीं , कॉलेज में कभी समझा नहीं , ऑफिस में कभी पहचाना नहीं - अपने आपको !! चलते रहे कुछ यूं ही जब तक ज़ोर की ठोकर न खायी थी - जिसके बाद से मैं स्वयं को ही नहीं, अपने आसपास रहने वालों की फितरत को भी समझने लगी।  जिन अपनों को मैंने आधुनिकता की होड़ में गँवा दिया था , शायद अब उनके पास आने लगी थी।  अब मैं खुद से थोड़ी दूर थी लेकिन दूसरों के कुछ और ज़्यादा क़रीब। रिश्तों में चड़मड़ाहट अभी भी थी लेकिन शरीर में एक नयी ऊर्जा जैसे माँ की कोख में नौ महीने बच्चा सिर्फ एक रूप ले रहा होता है , रिश्ते तो ज़मीन पर आने के बाद बनते हैं।

उत्तर प्रदेश से एक अजीब सा रिश्ता था।  यहाँ जंगलों की सी जंगलियत, मासूमों की सी मासूमियत, दलालों की सी सौदेबाज़ी और बुद्धिजीवियों की सी सौम्यता - सभी कुछ मौजूद था एक ही जगह। कहीं पर अंग्रेज़ियत इतनी कि अंग्रेज़ भी शर्मा जाएँ, कहीं पर हिंदी इतनी भी नहीं कि बुंदेली हिंदी का शब्द भी समझ पाएं।  तभी लगा कि क्यों मायावतीजी कभी-कभी इसके विभाजन की बात करती हैं।

उत्तर प्रदेशियों के साथ बिताते हुए पल लेती हूँ अलविदा।  


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